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Kavita Kosh से
पड़ा मैं बन्द जीवन में, मुझे बाहर निकलने दो ।
निकलने क्यों न दोगे ? तोदअ डालू‘ंगा तोड़ डालूँगा सभी बन्धन
न बन्दिश में रहेगा हथकड़ी-बेड़ी-कसा यह तन ।
मुझे जनता बुलाती है, बुलाता काल-परिवर्तन