भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
568 bytes added,
20:08, 10 मार्च 2019
{{KKCatKavita}}
<poem>
नहइर में सब झूठा हमर पिया।दिल के दरद के दवा तो इहाँ शराब न´् हे।हमरा ले तूँ अनूठा हमर पिया।।पियेवाला के लगे नीक तो खराब न´् हे।।बाप-महतारी गोइठा ठोकबाबे।केकरो ले ई दुनियाँ न´् छोड़े के चाही।बाँधल ही हम जीये ले ई खूँटा हमर पिया।। नइहर दुनियाँ में सिरिफ शबाब न´् हे।।पियेवाला ....बाप-महतारी भैंसी चरवाबे।अउ भी तो ढेर रिश्ता हे जीये के खातिर।जिनगी बदल हरेक बात में देबे के इहाँ जबाव न´् हे।।पियेवाला ....ढेर फूल हे ठूँठा हमर पिया।। नइहर चमन में खिलल खिलल इहाँसुगंध के खातिर सिरिफ गुलाब न´् हे।।पियेवाला .....हमरा ले त तूँहीं सुंदर सजनमा।हर हाल में इहाँ तोरा जीये पड़तो जिनगी।मूड़ी नवा के जीयेवाला आफताब न´् हे।।बाकी काला-कलूटा हमर पिया।। नइहर पियेवाला ....गउना करा हे बेकार के तूँ हमरा ले जा।ई जिनगी रफ्तार के बिना।हम उठइबो तोर जूठा हमर पिया।। नइहर हो सके जे न´् पूरा ऊ कोय ख्वाब न´् हे।पियेवाला ....हमरा रुक सकऽ हऽ कभिओ न´् तूँ अकवारी में भर लऽ।मंजिल के पहिले।हमरा से जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब न´् रूठऽ हमार पिया।। नइहर .हे।।पियेवाला ....
</poem>