भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अबोले हैं शब्द
ठण्डी छाती को फाड़कर निकलते हैं,
शाम को जब विफल हो बिखरते हैं,
जब उल्लू चीख़-चिल्ला रहा होता है।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits