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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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एक तोहरे सहारा हे ए माई।माईकहँय हो न जाय हमर जगहँसाई।।जगहँसाईहमर दुश्मन बनल हे जमाना।जमानाई बनइले हे हमरा निशाना।निशानापहरेदार बनके आ जा ए माई।। माईकहँय...एक तूँहीं हऽ मइया दयावान।दयावानआज आके बचा लऽ हमर जान।जानई दुनियाँ बनल हे कसाई।। कसाईकहँय...
मइया तूँहीं हऽ जग के माता।
तोहरे खातिर कर रहली जगराता।
अब लऽ भक्तन के लाज तूँ बचाई।। बचाईकहँय...  
</poem>