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Kavita Kosh से
|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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ई त अजबे हे नगरिया के रीत।रीतबाबू कोय न करऽ हे इहाँ पिरीत।।पिरीतहर कोय देखऽ हे अँखिया गुर्रा के।केतनिको न ताके प्यार से हमरा के।केहम केकरा के कहूँ मनमीत।। मनमीतबाबू ....केकरा से करी पिरितिया के आसा।आसाकोय न´् नञ् बोलऽ हे प्यार के भासा।भासाहमरा तो लागऽ हे हर कोय तीत।। तीत बाबू ....मनमा में बसल सामली सुरतिया।सुरतियाअँखिया के आगु मोहनी मुरतिया।मुरतियाउहे तो लेलकइ हम्मर मन जीत।। जीतबाबू ....बाँटले फिरऽ हे जे प्यार के संदेसा।संदेसाकोय के न´् नञ् ओकरा पर हे अंदेसा।अंदेसाइहाँ तो लेलकइ उहे जगजीत।। जगजीतबाबू ...
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