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Kavita Kosh से
|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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मगहिया झोला ले करके जब हम गाबे ले निकलऽ ही गाना।गानादोसर-तेसर के की कहना मेहररूओ मारऽ हे ताना।।तानारात के बारह बजे जब हम आबऽ ही कवि-सम्मेलन से।सेदरबज्जा पर करऽ हथ मइडम स्वागत हम्मर बेलन से।सेभुखले अइलूँ भुखले सुतलूँ न´् नञ् दरसन भेलो खाना।। खानादोसर ....हाँथ डाल जब जेब में खोजलक न´् नञ् निकलल एक पाई।पाईअपने पलंग पर जाके सुत गेल हमरा देलक चटाई।चटाईदुनहुँ आँख के छइते हमरा बना देलक ऊ काना।। कानादोसर ....लगलो सइयाँ कइसर रोग? इहे जुआनी पकड़ला जोग।जोगए सइयाँ ई ठीक बात न´् नञ् की कहतइ गउआँ के लोग?अभिओ बतिया मान ला हम्मर सौंप देवो तोरा खजाना।। खजानादोसर ....पहिले माय के बेटा ही हम फेर हिओ तोहर भतरा।भतराछठ, दिवाली बाहरे बिततइ, बाहरे बिततइ जतरा।जतराघर-घर मगही-गान करम हम चाहे कोई कहे दीवाना।। दीवानादोसर ....घर-घर मगही-गान करऽ हऽ मगहिअन के सम्मान करऽ हऽ।हऽअप्पन घर दीया न´् नञ् बाती दोसर के रोशनी-दान करऽ हऽ।हऽमुन्ना, मुन्नी के रुकल पढ़ाई न´्् नञ् हो अनाज के दाना।। दानादोसर ....उनखर बतिया सुनके हमर तो करेजा दरक गेल।गेललगऽ हे कोय अपशगुन होत बायाँ अँखिया फरक गेल।गेलचाहे केकरो तीत लगे पर सही हे उनखर निशाना।। निशानादोसर ....केकरा दिल के दरद सुनयइअइ, के बनता इहाँ मसीहा।मसीहास्वाति-बूँद के आशा में हम बन गेलियो हे पपीहा।पपीहाएगो हमरे बात न´् नञ् हे घर-घर के इहे फसाना।। फसानादोसर ....
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