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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
भवा देस म चलन
भाई भाई से जलन

कैसे जियरा कै हलिया बताई माई जी
केका चबरा कै गलवा देखाई माई जी

रोवें कनिया म लाल
भये बनिया बेहाल

हियां दुनियां कै चलिया बिकाई माई जी
केका चबरा कै गलवा देखाई माई जी

कुलि मचि गै तबाही
मरैं हमरे सिपाही

देखा सिमवा पै ताल कै ठोकाई माई जी
केका चबरा कै गलवा देखाई माई जी

होय लूट पाट मार
बाटै रेवड़ी अन्हार

काढ़ै चिरई कै खलरी कसाई माई जी
केका चबरा कै गलवा देखाई माई जी

</poem>