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|रचनाकार=जगदीश पीयूष
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
खेली चाही जहाँ घर अंगना दुवारे
पिपरा की छहियाँ लुकाइके किनारे
गांव रांव नदिया नहान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
उक्का बोक्का ताला माला पानी बड़ा बरसा
भइया की पिठिया पे चढ़ि के मदरसा
बड़ी भंई लाज खानदान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
सासुजी क ताना औ ननदिया क बोली
जियरा न निकसै समाय जाय गोली
चिरई कि तांई रामबान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
यहै बड़ी भाग कि मिला है पिया चोखा
जियरा डेराय न सुनाय कबौ धोखा
खटिया पै निंदिया मचान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
</poem>
|रचनाकार=जगदीश पीयूष
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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खेली चाही जहाँ घर अंगना दुवारे
पिपरा की छहियाँ लुकाइके किनारे
गांव रांव नदिया नहान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
उक्का बोक्का ताला माला पानी बड़ा बरसा
भइया की पिठिया पे चढ़ि के मदरसा
बड़ी भंई लाज खानदान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
सासुजी क ताना औ ननदिया क बोली
जियरा न निकसै समाय जाय गोली
चिरई कि तांई रामबान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
यहै बड़ी भाग कि मिला है पिया चोखा
जियरा डेराय न सुनाय कबौ धोखा
खटिया पै निंदिया मचान कै पिया
हे हो सुधि आवे खेत खरिहान कै पिया
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