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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
रब उसे माना औ कर ली बन्दगी
एक ही रौ में बही यूँ ज़िन्दगी

आँख खुद से ही मिला पाते नहीं
मार ही डालेगी ये शर्मिन्दगी

हाथ को ही काटना जो जानते
क्या भला देंगे किसी को ज़िन्दगी

जानते वह जान की कीमत नहीं
भर गई दिल में अजीब दरिंदगी

हाथ मैले आप के हो जायेंगे
यों न औरों पर उछालें गन्दगी

</poem>