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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ग़म से ज़रा निगाह चुरा लेना चाहिए.
खुशियों को अपने पास बुला लेना चाहिए
मज़हब के झंझटों से रहें दूर ही मगर
सजदे में कभी सर भी झुका लेना चाहिए
माना कि है न दीख रही राह कहीं भी
उम्मीद का दिया भी जला लेना चाहिए
कटती न हों मुसीबतें दुख और भी बढ़ें
माँ बाप की बड़ों की दुआ लेना चाहिए
गीता कुरान में न मिलीं जो इबारतें
उन को भुला के धर्म सुना लेना चाहिए
</poem>
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|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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ग़म से ज़रा निगाह चुरा लेना चाहिए.
खुशियों को अपने पास बुला लेना चाहिए
मज़हब के झंझटों से रहें दूर ही मगर
सजदे में कभी सर भी झुका लेना चाहिए
माना कि है न दीख रही राह कहीं भी
उम्मीद का दिया भी जला लेना चाहिए
कटती न हों मुसीबतें दुख और भी बढ़ें
माँ बाप की बड़ों की दुआ लेना चाहिए
गीता कुरान में न मिलीं जो इबारतें
उन को भुला के धर्म सुना लेना चाहिए
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