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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
ये यह धरा आसमान हो जाये
फिर किसी का मकान हो जाये

कर्म के साथ हक समझ लें तो
हर बशर इक समान हो जाये

शांति के दूत इन कपोतों की
एक लंबी उड़ान हो जाये

फिर सितारे जमीन पर उतरे
कुछ नई आन बान हो जाये

उस का कोई भला बिगाड़े क्या
रब जहाँ मेहरबान हो जाये

</poem>