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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़िंदगी की धूप को बच्चा समझ पाया न था
दूर उससे जब तलक़ माँ बाप का साया न था
दर्दो ग़म का दूर तक जब जीस्त मे साया न था
दौर बचपन के सिवा ऐसा कभी आया न था
खूबरू चेहरे ज़माने में हज़ारों हैं मगर
इक सिवा तेरे न जाने क्यूँ कोई भाया न था
तुम पे अर्पण और क्या करती मैं जाँ ओ दिल के बाद
इससे बढ कर पास मेरे कोई सरमाया न था
बेकली अब साथ ले कर रोज़ आती है ये शाम
ये सुहानी थी जब उस की याद का साया न था
संगदिल है ये ज़माना जानते कैसे ये हम
इसकी चौखट से कभी सर पहले टकराया न था
हसरतें पामाल होतीं हैं हमारी जा ब जा
ज़िंदगी तू ने कभी इस दर्जा तड़पाया न था
गर्क थे तारिक़ियों में सब दर ओ दीवार ओ बाम
नाजिशे शम्स ओ क़मर जब मेरे घर आया न था
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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ज़िंदगी की धूप को बच्चा समझ पाया न था
दूर उससे जब तलक़ माँ बाप का साया न था
दर्दो ग़म का दूर तक जब जीस्त मे साया न था
दौर बचपन के सिवा ऐसा कभी आया न था
खूबरू चेहरे ज़माने में हज़ारों हैं मगर
इक सिवा तेरे न जाने क्यूँ कोई भाया न था
तुम पे अर्पण और क्या करती मैं जाँ ओ दिल के बाद
इससे बढ कर पास मेरे कोई सरमाया न था
बेकली अब साथ ले कर रोज़ आती है ये शाम
ये सुहानी थी जब उस की याद का साया न था
संगदिल है ये ज़माना जानते कैसे ये हम
इसकी चौखट से कभी सर पहले टकराया न था
हसरतें पामाल होतीं हैं हमारी जा ब जा
ज़िंदगी तू ने कभी इस दर्जा तड़पाया न था
गर्क थे तारिक़ियों में सब दर ओ दीवार ओ बाम
नाजिशे शम्स ओ क़मर जब मेरे घर आया न था
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