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<poem>
क्या कहूँ मेरी वफ़ाएं क्या हुईं
हाँ मगर तेरी ज़फ़ाएं क्या हुईं

गूँजता था जिनकी किलकारी से घर
नन्हीं नन्हीं वो सदाएं क्या हुईं

झुर्रियों से पूछता है आईना
दिलकशी की वो फ़ज़ाएं क्या हुईं

जिस को पा कर खूब इतराते थे तुम
वो जवानी वो अदाएं क्या हुईं

जिनका रुख़ तुम मोड़ देते थे कभी
तुम बताओ वो हवाएं क्या हुईं

वक्त ने बदला ज़रा सा क्या मिज़ाज
थीं जो खुशियां दाएँ बाएं क्या हुईं

आप भी कुछ लबकुशा होंगे जनाब
या कि सब हम ही बताएं क्या हुईं
</poem>