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<poem>
फिर मेरा दिल दुखा गयी बारिश
आ के तन मन जला गई बारिश

तुम ने वादा किया जब आने का
तुम से पहले ही आ गई बारिश

आँख रोई है संग घटाओं के
सारा काजल बहा गई बारिश

आ के तुम भी सजाओ माँग मेरी
सारी धरती सजा गई बारिश

हम को जी भर के भीग लेने दो
आज तन मन को भा गई बारिश

रुत है झूलों की और फूलों की
याद बचपन दिला गई बारिश

बूँद के तीर तन पे चुभते हैं
प्यास दिल की बढा गई बारिश

कैसी नुदरत है इस की बूँदों में
स्वर्ग धरती बना गई बारिश

जिस्म ओ जां सब 'सुमन' सुलग उठ्ठे
ज़हन ओ दिल पर जो छा गई बारिश
</poem>