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|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
होय केतनेउ बिकट अँधेरु
जोति कै गीत जगाइब हो
जी लड़िहैं हक कै लड़ाई
उनकी महिमा गाइब हो

अपने सपनन का जोरि देति जी औरन के मन ते
गंगा निकसै गोमती बहति है उनके करमन ते
जी नखत तना चमकति हैं जग का राह देखावति हैं
अपने चरनन ते ई धरती का धन्य बनावति हैं
उनकी आरती उतारै
खातिनि सबिता लाइब हो

जी सांचु कि खातिनि अगिनि परिच्छा देइं बढ़इं आगे
जिनकी आंखिन मा नान्हें नान्हें फूल रहइं जागे
हौसलन केरि पतवार लिहे कइ जाइं पार धारा
जिनकी उम्मीदन के आगे हर संकटु है हारा
उनकी राहन का अपने
हाथन खूब सजाइब हो

गंगा जमुना जस करनी जिनके गीत जगत गावै
जिनकी गाथा मा परिवर्तन कै महामंत्रु पावै
उनके बचनन मा है रहीम और राम केरि बानी
उनहेन तेने किरनै निकसैं सुखदायक कल्यानी
उनकी आवाज सुनति खन
हम आवाज मिलाइब हो

</poem>