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|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
कइसे गुजर अब होइ अइसे गुजरिया
धन्धा न पानी
सूनी परी है जइसे सारी नगरिया
धन्धा न पानी

आपनि बिथा हम रोई पथरन के आगे
हमरे करेजे मइहां मुसवा हैं लागे
झांझर परी है हमरे मन की चदरिया
धन्धा न पानी

कारी अंधेरिया दउरै लै लै कै लाठी
लकड़ी कै घोड़वा लादे लोहे कै काठी
हमरे करम मा नाहीं कउनौ उजेरिया
धन्धा न पानी

हउसन प पाला परिगे सपना झुराने
सातिर सिकारी द्याखौ बइठे मुहाने
का जानी अब को लेई हमरी खबरिया
धन्धा न पानी

</poem>