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|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
हमरे लोभु औरु पाप कै
निसानी होइ गवा
अइसि बेहयाई पानी
पानी पानी होइ गवा

पानी क्यार नारा दइकै मालु काटैं हमरे ग्यानी
ब्वालैं हमरे मूड़े आई दुनियादारी जापेसानी
जौनु लाल बत्ती पावा बदगुमानी होइ गवा

तलवा सगरे पाटि पाटि ल्वाग पट्टा लूटि लेति
अपने घर का हालु देखि पानी छत्ता कूटि लेति
जलु बचावै क्यार सपना लन्तरानी होइ गवा

आंखि क्यार पानी मरिगा तौ देखाय कइसे पानी
बनिकै आमिा कै मोती जगमगाय कइसे पानी
हमरा चित्तु मानौ सूखि राजधानी होइ गवा

</poem>