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|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
दगाबाज दुनिया है सबै कुछु रुपइया
तरफराति पिंजरा है काठ कै चिरइया

कबौ लोनु रोटी है
बसि फटही धोती है

आँखिन-मा बूड़े हैं सुर्ज औ जोन्हइया

हम करजा ढोइति है
मूडु पकरि रोइति है

जइसे सब मरिगे हैं बाप अउरु मइया

किसमत सबु गोड़ि चुकी
लोटिया लौ बूड़ि चुकी

अब बूड़े वाली है स्वाँसा कै नइया

<poem>