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|संग्रह=अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
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<poem>
दुनिया की सबसे खूबसूरत आँखों में
मेरी अपनी एक छोटी सी दुनिया है
आकर्षक, चमकीली और सागर सी गहरी
आकाश जहाँ धरती का चुम्बन लेता है।

गर्व से खड़े पहाड़ों के मस्तक पर
विस्तृत सागर की असीमित जलराशि
अपनी मदमस्त लहरों के वेग द्वारा
किनारे पड़े पत्थरों से अठखेलियाँ करती है।

प्रकृति की उद्दाम सुन्दरता जहाँ समाहित है
वहाँ मेरी एक छोटी सी कुटिया है
समस्त वातावरण अप्रतिम सौन्दर्य से सुसज्जित
मनमोहक सुगंध से झूमता पुष्प-पराग से मण्डित
समस्त गोचर एवं अगोचर प्राणी से विलसित।

प्रेम की पराकाष्ठा की अनुभूति से सम्पूरित
उल्लसित पवन, पक्षियों का प्रेमगीत
चहुँओर आनन्दानुभूति का चरमोत्कर्ष
मुदित मिलन की स्थापना का पवित्र पर्व
आयोजित है जहाँ पर।

पर्वत शिखर गलबहियाँ डाले निहार रहे हैं
पूर्ण वेग से उद्वेलित जलधारा को
जो स्वयं को अपने चिर प्रेमी सागर की
बाँहों विलीन कर देने को उत्सुक है
मैं धन्य हूँ की यहाँ मेरा बसेरा है

और भला कहाँ रहूँगा मैं इन नयनों के सिवा
अब कहीं जाना भी न चाहूँगा
जहाँ मेरे सपनों ने जन्म लिया
मैं वहीँ रहूँगा सदा के लिए।
</poem>
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