भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
1{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'}}{{KKCatKavita}}<poem>70
हम बहुत अकेले हैं
क़िस्मत के हाथों
उजड़े हुए मेले हैं।
271
साथ रहें बेगाने
शातिर दुनिया को
कैसे हम पहचाने ।
372
हम किसकी बात कहें
कब था चैन मिला
हरदम आघात मिले।
173
तुम चन्दा अम्बर के
मैं केवल तारा
चाहूँगा जी भरके।
274
तुम केवल मेरे हो
साँसों में खुशबू
बनकरके घेरे हो।
375
जग दुश्मन है माना
रिश्ता यह दिल का
जब तक साँस निभाना।
476
तुझको उजियार मिले
बदले में मुझको
चाहे अँधियार मिले।
577
तुम सागर हो मेरे
बूँद तुम्हारी हूँ
तुझसे ही लूँ फेरे।
<poem>