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चेत मांनखा ! / रेंवतदान चारण

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<poem>
खेत खड़णनै हळ लै हाली,
जद करसां री टोळी;
कितरा दिन तक सबर करैला,
माटी हंसनै बोलीः
रे बंदा चेत मांनखा चेत, जमांनौ चेतण रौ आयौ!

इण माटी में सौ-सौ पीढ़ी, मरगी भूखी प्यासी;
भाग भरासै रह्यौ बावळा, प्रीत करी आकासी,
कदै तो पड़ग्यौ काळ अभागौ, गिणगिण काढ़्यौ दोरौ;
कदै तो ठाकर लाटौ लाट्यौ, कदै लाटग्यौ बोरौ;
कदै तो बैरी दावौ पड़ग्यौ, कदै आयगी रोळी;
कितरा दिन तक सबर करैला, माटी हंसनै बोली;
रे बंदा चेत मांनखा चेत,
जमांनौ चेतण रौ आयौ!

मांग्या खेत मिळै नीं करसा, मोल चुकाणौ पड़सी;
मोत्यां मूंघी इण धरती रौ, कौल निभाणै पड़सी;
साम्हीं छाती जे कोई आयौ, जोर जताणौ पड़सी;
खेत खड़ंतां हळ जे रोक्यौ, हाथ कटाणा पड़सी;
लोई बिना रंग नीं आवै, धरती पड़गी धोळी;
कितरा दिन तक सबर करैला, माटी हंसनै बोली
रे बंदा चेत मांनखा चेत,
जमांनौ चेतण रौ आयौ!

</poem>
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