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Kavita Kosh से
आयौ मेघ मांगनै लेग्यो, प्रीत करै सो भोळा रै;
सेसनाग समदर में सूतौ, लेतो नीर हिबोळा रै;
धूम तावड़ै कळभळ करती, तपती देखी धरती;
पांन-पांन रूंखां रा झड़ग्या, बेलड़ियां बळबळती;