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<poem>
घण मूंघा मोती मत ढळका
रोयां रुजगार मिळै कोनीं
व्है लखपतियां रो राज जठै
भूखां रौ पेट पळै कोनीं!

चारूंमेर थे चकारा देता, भूखां नै बेकारां फिरलौ
रोटी रा टुकड़ा-टुकड़ा नै, बेमौत बिलखता ई मरलौ
पण गंगा-जमना रै जळ जितरौ, नैणां में नीर नहीं भरलौ
धोरां री तिरसी धरती में, आवै नीं पिरथी-परळौ!
अै मैल झुकै नीं नींवां बिन
बाती बिन दीप बळै कोनीं
घण मूंघा मोती मत ढळका
रोयां रुजगार मिळै कोनी!

व्है लखपतियां रो राज जठै, भूखां रौ पेट पळै कोनीं!
आंख्यां रै ऊंडै समदर रा, मोत्यां रौ मोल घणौ मूंघौ
इमरत नै मद रै प्यालां सूं, आसूं रौ तोल घणौ मूंघौ
सोना-चांदी रा सिक्कां सूं, मैणत रौ कोल घणौ मूंघौ
यां लखपतियां री बोली सूं, मजदूरी बोल घणौ मूंघौ!
भिड़ जावण दौ मैल-झुंपड़ा
झगड़ै रौ जोग टळै कोनीं
घणा मूंघां मोती मत ढळका
रोयां रुजगार मिळै कोनीं।
व्है लखपतियां रो राज जठै,
भूखां रौ पेट पळै कोनीं!
</poem>
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