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पिणघट / रेंवतदान चारण

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<poem>
भूंण गिड़गिड़ी बंध्या कूड़िया, लाव चड़स भर लावै
खाथी हालै गाय गाडरां, डांगर खेह उडावै
घड़ा मटकियां कळस बेड़लौ, वे पिणियार्यां आवै
खीली खोलदै खांमेड़ा, बारौ भरयौ बोलै रै!

देख अजै तक खाली पड़िया, कूंडी, कोठा, खेळी
तावड़ियै में तिरसां मरती, भैस्यां ऊभी भेळी
कोठै दोळौ सांड कळपतौ, फिर-फिर पाछौ जावै
खीली खोलदे खांमेडा, बारौ भर्यौ बोलै रे!

बाजै टणमण टोकरिया रे, चांपौ चारै गोरी
पावण लायौ पीच डांगरा, बाटां जोवै थारी
मोड़ौ मत कर तेवण वाळा, जाखोड़ौ अरड़ावै
खीली खोलदे खांमेड़ा, बारौ भर्यौ बोलै रे!
ऊंचण लागी नार नवेली, माथै ऊपर मटकी
बाजूड़ै री लूंबा बैरी, ईंढांणी में अटकी
पिणघट ऊभी पिणियारी रा पल्ला पूंन उड़ावै
खीली खोलदे खंामेड़ा, बारौ भर्यौ बोलै रे!

जात-पांत में कीकर बंधग्यौ, ओ पिणघट रौ मेळौ
मेघवाळ सूं छांटा लेवै, पांणी भरै न भेळौ
न्यारी-न्यारी भरै मटकियां, ऊंच-नीच बतळावै
खीली खोलदे खांमेड़ा, बारौ भरयौ बोलै रे!
</poem>
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