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'''बहुत हो चुका अब चलना पड़ेगा'''
'''माफ़ करना तुम हर आदत हमारी।'''
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'''भूले ही नहीं जब तो कैसे तुम्हारी याद आती।'''
'''सूखे नहीं हैं अश्क कैसे हरपल हमको रुलाती।'''
'''आज वक़्त ने सजाए मौत जीते जी दी है हमें'''
'''चले भी आओ मेरे प्राण रुह तुमको ही बुलाती।'''
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जितना उसने था दुत्कारा, उतना पास तुम्हारे आया।
आरोपों को झड़ी लगाकर ,पास तुम्हारे ही पहुँचाया।
मन था जो गंगा सा निर्मल,उसने समझा कलुष नदी-सा
कभी न मन में भाव रहा जो,उसने जो आरोप लगाया।
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