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<poem>
मौन हुये अब शब्द हमारे
ये खत लिखने से पहले
रूठ गये सब भाव हमारे
अश्क़ टपकने से पहले

धुँधलाया है मन का दर्पण
धूल जमीं उसके ऊपर
छूटा सूरत का आकर्षण
मोह नहीं उस पर निर्भर

देख लिया हर रूप तुम्हारा
सूरज ढलने से पहले
मौन हुये हैं शब्द हमारे
ये खत लिखने से पहले

शेष नहीं अवशेष पुराने
जो दिल को आहत कर दें
पीड़ा की सौगात थमाकर
फिर से मर्माहत कर दें

अक्स मिटा डाले हैं सारे
संशय पलने से पहले
मौन हुये हैं शब्द हमारे
ये खत लिखने से पहले

शूल दिया करता है पीड़ा
फूल व्यथा देता अतिशय
सुधियों का जब लगता ताँता
छीन लिया करता सुरलय

भूल गया हूँ मिष्ट सुधारस
खुद मुरझाने से पहले
मौन हुये हैं शब्द हमारे
ये खत लिखने से पहले

दूर हुयी है "मीत" कल्पना
गीत नहीं रच पाता अब
फीकी लगती रंग अल्पना
नेह नहीं भर पाता अब
आकर कह दो तुम दो आखर
मेरे जाने से पहले
मौन हुये हैं शब्द हमारे
ये खत लिखने से पहले
</poem>
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