भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मुमकिन है वे और भी पुराने हों
हमारी परिचित भाषा से कहीं ज़्यादा पुराने
लेकिन वे आज भी उतने ही ताज़ा हैं, जितने मक्का के दाने — दाने
हालाँकि वे उगे थे पहले-पहल, आज से
दस सहस्त्र साल पहले ।