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ये सदायें1 फ़िजायें2 सदायें फ़िजायें ये काली घटायें
जो रोती थीं दम भर के अक्सर बतायें
आंचल में छिप-छिप के रोयी हुई थीं
बस दिल में तमन्ना3 तमन्ना संजोई हुई थीं
हुई माँ व बहनों की अस्मतदरी4 अस्मतदरी थी
जो नंगी सभा में घुमायी गयीं थीं
मज़बूर व मज़दूर था जिनको बनाया
तो सदा आह भरने से कुछ भी न होगा
अब ख़ामोश रहने से भी कुछ न होगा
बग़ावत के अलावा कोई और चारा नहीं है
लगी आग दिल मंे अब बुझ न सकेगी
मनु तेरी बस्ती अब बच न सकेगी
फसादों की जड़ें हैं जो तेरे पास सारे
होंगी फिर से ज़िन्दा तहजीवें हमारी
है तुम्हारे ख़िलाफ अब बग़ात हमारी....
(जनवरी 2011, जेएनयू)
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