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प्रकृतिक लीला / एस. मनोज

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प्रकृतिक लीला अपरंपार
पढ़ि-लिखिकें बूझब यार

कखनहुँ बरखा खूब कराबय
कखनहुँ वनमे आगि लगाबय
बाढ़िक विपदा एहन बनै जे
कय दैत अछि सभकेँ लाचार

चमचम चमकै चान गगनमे
सूरज एकसर रहै मगनमे
भुवन भास्कर पर अवलंबित
जीवनकें जे रूप हजार

इन्द्रधनुष अछि कतयसँ आबैत
नभमे जाकें फेर नुकाबैत
बादल पर जे किरण पड़ै त'
पनिसोक्खा बनिकें तैयार

हिमकण कियै गलि रहल अछि
सागरमे की पलि रहल अछि
सूक्ष्म रूप सँ वृहत रूप धरि
जीक जगत कें विविध प्रकार
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