भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
{{KKCatDalitRachna}}
<poem>
जब पग धरती पर पड़ते हैं
हर जातिवाद की रातों में
तब आजाद नहीं तेरे ख्वाबों में
खुद आंसू की बरसातों में
मैं गुलाम बना तेरी चालों से
जब आजाद नहीं तेरे आंखों में
जब सुर्ख हो आंखों की बदली
तब दलित की दुनिया सोती है
हर राग में जिसकी हो विरहा
वह बस्ती किस दिन सोती है
मेरी अस्मिता नीलाम किया
अपने वर्चस्व के धाकों से
मैं आजाद नहीं तेरे आंखों में
कर्ज का बोझ सदा भारी
जब भूखा दलित उठता है
उस वक्त सवर्ण साहूकारों का
खूब सूद जवां हो जाता है
हम डूब गये दुख सागर में
कुछ शंखनाद के भावों से
मैं आजाद नहीं तेरे आंखों में
जिन आंखों तले गुलाम रहा
उन आंखों को निकालूंगा
ब्राह्मणवाद ज़ालिम कैसे
इसके अनुभव से जानूंगा
मेरे जमीर के तुम शासक
मैं ‘बाग़ी’ हूँ इन बातों से
में आजाद हूँ खुद आंखों में
इन खून भरे बरसातों में
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
{{KKCatDalitRachna}}
<poem>
जब पग धरती पर पड़ते हैं
हर जातिवाद की रातों में
तब आजाद नहीं तेरे ख्वाबों में
खुद आंसू की बरसातों में
मैं गुलाम बना तेरी चालों से
जब आजाद नहीं तेरे आंखों में
जब सुर्ख हो आंखों की बदली
तब दलित की दुनिया सोती है
हर राग में जिसकी हो विरहा
वह बस्ती किस दिन सोती है
मेरी अस्मिता नीलाम किया
अपने वर्चस्व के धाकों से
मैं आजाद नहीं तेरे आंखों में
कर्ज का बोझ सदा भारी
जब भूखा दलित उठता है
उस वक्त सवर्ण साहूकारों का
खूब सूद जवां हो जाता है
हम डूब गये दुख सागर में
कुछ शंखनाद के भावों से
मैं आजाद नहीं तेरे आंखों में
जिन आंखों तले गुलाम रहा
उन आंखों को निकालूंगा
ब्राह्मणवाद ज़ालिम कैसे
इसके अनुभव से जानूंगा
मेरे जमीर के तुम शासक
मैं ‘बाग़ी’ हूँ इन बातों से
में आजाद हूँ खुद आंखों में
इन खून भरे बरसातों में
</poem>