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{{KKRachna
|रचनाकार=धनेश कोठारी
|अनुवादक=
|संग्रह=[[ज्यूंदाळ / धनेश कोठारी]]
}}
{{KKCatGadhwaliRachna}}
<poem>
उत्तराखण्ड वासी जाग
शैल पुत्र जाग-जाग
गढ़-कुमौ नारेंण दगड़ी
भूमि का भुम्याळ्जाग
धौळी का गंगलोड़ा जाग
छोड़ दे लमडणौ भाग
हिमाला कि स्थिरता देख
धौळी कि दगड़ न भाग
ज्युकड़ि मा धीरज बंधौ
करम कू लालच लगौ
गिच्चा परन्बुज्याड़ु हटौ
सुणौ क्वी सुरीलु राग
शिक्षा कि तू भिक्षा ली
सोच सणि विस्तार दी
कख ऐगे पुळ्योंण मा
थमळी च लटकिं मोंण मा
लंगोठ्या कू सि छोड़ अभाग
अब मन्खि ह्वेगेनि मनस्वाग
रात्यों कि दगड़ सुबेर
रोज औंदी न छोड़ आस
आज तेरा सारा लग्यूं च
भोळ्थैं न करि निराश
सुदिनूं कि टक्क लगिं
कब छुटलु तेरु बैराग ॥
</poem>
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|रचनाकार=धनेश कोठारी
|अनुवादक=
|संग्रह=[[ज्यूंदाळ / धनेश कोठारी]]
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<poem>
उत्तराखण्ड वासी जाग
शैल पुत्र जाग-जाग
गढ़-कुमौ नारेंण दगड़ी
भूमि का भुम्याळ्जाग
धौळी का गंगलोड़ा जाग
छोड़ दे लमडणौ भाग
हिमाला कि स्थिरता देख
धौळी कि दगड़ न भाग
ज्युकड़ि मा धीरज बंधौ
करम कू लालच लगौ
गिच्चा परन्बुज्याड़ु हटौ
सुणौ क्वी सुरीलु राग
शिक्षा कि तू भिक्षा ली
सोच सणि विस्तार दी
कख ऐगे पुळ्योंण मा
थमळी च लटकिं मोंण मा
लंगोठ्या कू सि छोड़ अभाग
अब मन्खि ह्वेगेनि मनस्वाग
रात्यों कि दगड़ सुबेर
रोज औंदी न छोड़ आस
आज तेरा सारा लग्यूं च
भोळ्थैं न करि निराश
सुदिनूं कि टक्क लगिं
कब छुटलु तेरु बैराग ॥
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