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<poem>
उत्तराखण्ड वासी जाग

शैल पुत्र जाग-जाग

गढ़-कुमौ नारेंण दगड़ी

भूमि का भुम्याळ्जाग



धौळी का गंगलोड़ा जाग

छोड़ दे लमडणौ भाग

हिमाला कि स्थिरता देख

धौळी कि दगड़ न भाग



ज्युकड़ि मा धीरज बंधौ

करम कू लालच लगौ

गिच्चा परन्बुज्याड़ु हटौ

सुणौ क्वी सुरीलु राग



शिक्षा कि तू भिक्षा ली

सोच सणि विस्तार दी

कख ऐगे पुळ्योंण मा

थमळी च लटकिं मोंण मा

लंगोठ्या कू सि छोड़ अभाग

अब मन्खि ह्वेगेनि मनस्वाग



रात्यों कि दगड़ सुबेर

रोज औंदी न छोड़ आस

आज तेरा सारा लग्यूं च

भोळ्थैं न करि निराश

सुदिनूं कि टक्क लगिं

कब छुटलु तेरु बैराग ॥
</poem>
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