भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कौनें सिखाबै लिखै-पढ़ै लेॅ
आरो मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बात हो।।हो।
साक्षरता केन्द्र सेॅ मिललै, लिखै लेॅ हमरा सिलौठ हो
भैया हो, पढ़ै लेॅ हमरा किताब हो।
एमटी, भीटी पढ़ै-लिखै लेॅ, आरो सिखाबै मिट्ठोॅ बात हो।।हो।
‘क’ से करमा, ‘ग’ से गैया, ‘ब’ से बकरी बताबै।
रूपया-पैसा जोड़ी-तोड़ी, हिसाब करै लेॅ सिखाबै।।सिखाबै।
जिनगी के अंधियारा हो भैया, पढ़ी-लिखी दूर भगैयोॅ।
पाठ के सीख सीखी केॅ भैया, सुन्दर भविष्य बनैयोॅ।।बनैयोॅ।
भैया, मैया आरो बहिनियाँ, मिली-जुली करै किलोल।
पढ़ी-लिखी केॅ अचरज करै, साक्षरता के जय बोल।।बोल।
</poem>