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Kavita Kosh से
104
घिरा आग में
व्याकुल हिरना -सा
खोजूँ तुमको।
105
प्यास बुझेगी
मरुथल में कैसे
साथ नहीं न तुम।
107
अँजुरी भर
शब्दों से परे
सारे ही सम्बोधन
पुकारूँ कैसे!
109
भूलूँ कैसे मैं
तेरा वो सम्मोहन
कसे बन्धन।
'''110
तन माटी का
मन का क्या उपाय
तरसे नैन
अरसा हुआ देखे
छिना है चैन।'''
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