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31तुम बिन बैरी रात है,तुम बिन व्यर्थ विहान।छुवन तुम्हारी जब मिले ,पूरे तब अरमान।।32अपने आँगन में चला , कैसा यह अभियान।बन्द नैन पढ़ने लगे ,गीता वेद,कुरान ॥33मेरी झोली में भरो,चाहे जग के शूल ।प्रिय के पथ में तुम सदा, बोते रहना फूल।34तेरे मन से जो जुड़े,मेरे मन के तार।रहना होगा साथ ले, साँसों की पतवार।।35नुक़्ताचीनी में गए , सभी सुखद दिन- रैन।हाथ लगा कुछ भी नहीं ,खोकर मन का चैन।36पाया हमने सेर भर,खोया मन भर प्यार।पूँजी निकली हाथ से,सब कुछ बिका उधार।।37खोकर ,ठोकर जब लगी,तभी हुआ यह भान।आ पहुँचा था द्वार पर,यम लेकर फरमान।।38टूट चुके इस गाँव के, अब सारे दस्तूर ।दर्पण में दिखते नहीं, अपने ही नासूर ॥39रूप आज,कल है नहीं,आती जाती छाँव।हमको पूरा चाहिए,तेरे मन का गाँव।।40छाया दी जिस पेड़ ने, काटी उसकी डाल ।बार-बार फिर पूछते, ‘अब तो हो खुशहाल’॥41पता नहीं कितने भरे , हमने मन में खोट।मरहम जब तक ढूँढते, फिर लग जाती चोट ॥42गले लगे फिर रो पड़े,दोनों ही इक साथ।मन में डर था बस यही,छूट न जाए साथ।।43 अपनों का दुख देखकर,मन को मिले न चैन।इंतज़ार में दिन कटे,कटे दुआ में रैन ।।44अँसुवन जल से सींचकर,पूजे आँगन-द्वार।परदेसी आया नहीं,खोले रहे किवार।45खोजे से मिलता नहीं,हमको अपना गाँव।हर लेती हर धूप को,जहाँ प्यार की छाँव।
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