भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
48
'''अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।'''
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
49