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<poem>
मांगै धरती तिरसां मरती के लोही के पांणी
जुग पसवाड़ौ फेर लियौ बीती बातां बिसरांणी
पैली आंम्ही सांम्ही फौजां रणखेतां कटती मरती
लोही चांरूमेर बिखरतौ रातै रंग में रंगती धरती
माटी मिनखां रै प्रांणां सूं लाय बुझाती थावस भरती
पीढी पीढी प्रेत जागता प्रीत बधाता जद आ ठरती
माटी रै अंतस री झाळां भोळै मांणस कदै पिछांणी
मांगै धरती तिरसां मरती के लोही के पांणी
जुग पसवाड़ौ फेर लियौ बीती बातां बिसरांणी

ऊंडै खारै समदर जळ सूं आभै घटा उमड़ती आती
मेघ गरजता बीज पळकतो बिरखा जद पांणी बरसाती
डूंगर ढळती नदियां सूं आ तिरसी धरती तिरस बुझाती
चीर काळजौ हंसती हंसती फूलां मिस सांसां पसराती
चारूंमेर चांनणौ रैतौ झाला करती ढांणी ढांणी
मांगै धरती तिरसां मरती के लोही के पांणी
जुग पसवाड़ौ फेर लियौ बीती बातां बिसरांणी

पांणी खूट्यां जूंण कठै है सूखी नदियां सूखा सरवर
बन उपबन री आस करै कुण पसरण लागौ रोही घर घर
भूख बधाई बांटण लागी लूट-पाट रा लागा लंगर
माटी किणनै देवै ओळबौ लाज लेवणी धारी अंबर
पाछौ रूप संवेटण लागी देख मिनख री खेंचातांणी
मांगै धरती तिरसां मरती के लोही के पांणी
जुग पसवाड़ौ फेर लियौ बीती बातां बिसरांणी
</poem>
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