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|संग्रह=उछाळौ / रेंवतदान चारण
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<poem>
गांधी मातमा री आतमा
परमातमा नै पूछती व्हैला
रूंख औ कुम्हळायौ कीकर
कूंपळ कंवळी फूटियां पैला
गूंगौ देस रौ गणतंत्र
जीभां लाग्योड़ा ताळा
बांगौ बापड़ौ हुयग्यौ
ऊंधी फेर नै माळा
बोळौ जांण नै बणग्यौ
अणूंता चेतग्या चाळा
आंख्यां फोड़ नीं लेवै
बिगड़ता देख नै ढाळा
तंत्र रै गण नै बचावण दोख्यिां रौ पाप थूं कद तक भरैला
गांधी मातमा री आतमा परमातमा नै पूछती व्हैला
रूंख औ कुम्हळायौ कीकर कूंपळ कंवली फूटियां पैला

सिंघासण खोसणै खातर
रूखाळा मांडियौ रगड़ौ
प्रसासण लूट माचण नै
लगायौ मोरचौ तगड़ौ
अमोलक मांनखौ मरग्यौ
दबायां काळजै दुखड़ौ
अलेखूं झूंपड़ा बळग्या
बुझावण महल रौ झगड़ौ
आरती री जोत जगावण क्यूं मांनखौ मस्तक चढावैला
गांधी मातमा री आतमा परमातमा नै पूछती व्हैला
रूंख औ कुम्हळायौ कीकर कूंपल कंवळी फूटियां पैला
</poem>
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