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काळ: 3 / रेंवतदान चारण

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<poem>
भाळ औ कंवळै ऊभौ काळ
बिरंगौ रूप कियां विकराळ
मौत री मोटी जाजम ढाळ
धरा री पसम धरा सूं बागी

कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी
बोली खेतां बळती साख
धरती जतन जताया लाख
रूखाळा मिनखीचारौ राख
बेली हुयग्यौ कियां बैरागी

कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी

लूआं निराताळ बळबळती
कांपै धरा सांस कळकळती
नदियां सूखी खळखळती
माटी नै मांनेतां दागी

कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी

आंधियां आई जेठ असाढ
बतूळौ गिगन रै गळबै चाढ
जमीं रौ पतवांण्यौ पूरौ गाढ
अंबर धरा री प्रीत भागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी
सांवण हंदी तीज अडोळी
मैंहदी पड़ी बाटकां घोळी
हींडा बिलखै टाबर टोळी
लौ मौत मसांणां जागी

कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी

चौमासा व्हैता लीला चैर
आज क्यूं धरा गिगन रै बैर
सूखी कांकड़ सूखा डैर
दयावंत रै दया नै जागी

कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी
</poem>
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