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<poem>
मांणस बिलखै मोकळा पसुआं रौ पोखाळ
धरा कियां धीरज धरै कोजौ पड़ग्यौ काळ

पाळण पोखण डांगरां जाजा किया जतन्न
ढांढा मरग्या डाडता पड़ै मारणौ मन्न

बळद गाय बचसी नहीं छाळी देवै छेह
मतलब रा सुण मांनवी निरलज थारौ नेह

भैस्यां रौ भाग्यौ भरम दुख में छूटै देस
चौमासे नहिं चाखियौ लीला रौ लवलेस

लगती मरगी लरड़ियां अेवड़ आयौ अंत
अेवाल्यौ अत उणमणौ ऊंडी आह भरंत

नेहचै चरता नीरणी तोड्या ऊंट अपार
काळ बरस रै कारणै मर्यां छूटै लार

मोटी बातां मोकळी गरबौ देता ग्यांन
भूमंडल तोड्यौ भरम बीसरग्या विग्यांन

छापै में नित रौ छपै औ है मौसम आज
अगम भखै उलटौ हुवै काळ बरस रै काज

सुगन लिया केई सुगनिया आई आखातीज
मेघ न आभै मावसी गरज पळकसी बीज
</poem>
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