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<poem>
गवरां नै गिणगोरियां नाचै घूमर नार
चैत मास चिलकौ करै हुयौ काळ हुसियार

चारूं कांनी चैत में झींणै बायरियेह
काळ रमावै कोड सूं परणी पीहरियेह

नवौ बरस पलटै परौ बीत्यां आधै चैत
काळ कुलंगी कपट कर निरभै घालै नैत

चिलक्यौ जबरो चेत में तावड़ तड़तड़तोह
पांणी सरवर पाखरां बैरी बळबळतोह
</poem>
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