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<poem>
आधोइ माघ उतरतां बसंत पंचमी पैल
काळ देख कतरायग्यौ छिटक छोडग्यौ छैल

फूल सुरंगी बेलड़ी बाग बगीचां फूल
बालम तिया बिसराय नै भारी कीनी भूल

काची काची कूंपळां हरख्या तरवर खेत
काळ काढै क्यूं आंखियां खड़सां पाछा खेत

मिंत महीणौ माघ रौ हिवड़ै नै हुलसाय
कर मत चिन्ता काळ री मिनख जमारै आय

असाढ महीणौ आवसी संग सांवण सरसाय
भरतार मिलांला भादवै तन मन नै बिलमाय
</poem>
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