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न सिन्धु अँधियार भी , उमड़ रही जलधार।मैं एकाकी कर गहो, छोड़ो मत मझधार।91तुझमें ही अटके हुए,मेरे पापी प्राण।कभी छोड़ तुम चल दिए,मुझको मिले न त्राण।92दीप जलेगा प्रेम का, घनी रात या प्रात।साँसें जब तक तन बसी,मैं हूँ तेरे साथ।।93नीरव कोने में बसा,कहता बारम्बारआँसू पी लूँ नैन के,मैं हूँ तेरा प्यार।94फूलों पर तितली कभी, तनिक न होती भार।लेकर चल दूँ मैं तुम्हें, ,सीमाओं के पार।95दर्द कभी मैं दूँ तुम्हें,तो मुझको धिक्कार।तुम तो प्राणों में बसे ,बिछड़ो ना इस बार।96सुनकर वाणी आपकी,मन को मिला सुकून।तुम ही मेरी आरज़ू, केवल तुम्हीं जुनून ॥97ईश्वर ने मुझको दिया,दुर्गम पथ पर साथ।मुड़कर देखा तुम मिले ,पकड़े मेरा हाथ।।98रोम- रोम में गूँजता,गीत बना गुंजार।जीवन के हर मोड़ पर,तुम्हीं प्यार का सार।99हरदम साँसें कह रहीं, तुम हो मन के पास।तुम मेरा ही रूप हो,तुम मेरा विश्वास।100बन जाए जब जीभ ही, दोधारी तलवार।ज़हर बिना मरते रहे, हम तो लाखों बार ॥101तन-मन सब आहत हुआ, रोज़ झेलते तीर । मौन बनी जीवित रही, हरदम मन की पीर ॥102सोचा था कल भोर में,गूँजेंगे कुछ गान ।नींद लूट तकरार ने , मन को किया मसान॥
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