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|रचनाकार=सुनीता पाण्डेय 'सुरभि'
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<poem>
कैसे अपनी पीड़ा का इज़हार करूँ।
कैसे तुमको चाहूँ, कैसे प्यार करूँ॥

आँसू से भींगा है ये मेरा आँचल।
देखोगे तो होगी दिल में कुछ हलचल।
बहलूँगीं मैं नहीं, तुम्हें क्या बहलाऊँ-
यही सोचती रहती हूँ निश-दिन हर पल।
दर्द का प्याला तन्हा मैंने पाया है-
इसका कैसे मैं तुमको हकदार करूँ॥

तुमको पाया जीवन मेरा महक गया।
दिल भी मेरा लगता है कुछ बहक गया।
जीवन इसका नाम नहीं मेरे साजन-
रोक रही हूँ आँसू फिर से छलक गया।
तुमसे होकर दूर नहीं रह पाऊँगी-
अपनी खुशियों का कैसे संहार करूँ॥

खुद से ज़्यादा मैंने तुमको जाना है।
प्यार तुम्हारा सच्चा मैंने माना है।
होगी नहीं शिकायत तुमसे जीवन में-
हाल कोई हो रिश्ता मुझे निभाना है।
साथी मेरे हो मेरे ही रहना तुम-
अपने हिस्से की खुशियाँ उपहार करूँ॥
</poem>
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