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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
खुद को खो दें और फिर ढूंढा करें
खेल ऐसा भी कभी खेला करें।

यूँ ग़ज़ल के शेर को समझा करें
चुप रहें और देर तक रोया करें।

याद तो अश्क़ों का कमरा है जनाब
आप इसको रोज़ मत खोला करें।

अब तो बिकने लग गये एहसास भी
तोलकर और नापकर बोला करें।

कल बड़े होकर सहारा देंगे ये
दर्द बच्चों की तरह पाला करें।

बस दुआओं ने किया हमको खराब
आप देकर बद्दुआ अच्छा करें।

आ के वो अंदर हमारे बस गये
अब भला कैसे उन्हें सजदा करें।

</poem>
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