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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
दिल की बेचैनी बढ़ी दिल पर गुज़र जाने के बाद
ज़ख़्म की तासीर समझी ज़ख़्म भर जाने ले बाद।

तुम समंदर हो न समझोगे मिरी मजबूरियां
एक दरिया क्या करे पानी उतर जाने के बाद।

मत करो हर दम जफ़ा की क़त्ल की ग़ारत की बात
हम कहां जाएंगे इस दुनिया से डर जाने के बाद।

दिल की बस्ती से मिरी गुज़री अगर तो जान लो
जा नहीं पाया कोई इक पल ठहर जाने के बाद।

आयेगी चिहरे पे रौनक खिल उठेगी ज़िन्दगी
ग़म के आइने में थोड़ी सज-सँवर जाने के बाद।

मुंतज़िर आंखों में भर जाती है किरणों की चमक
सुब्ह बन जाती है हर शब मेरे घर जाने के बाद।

हंस रहे हो मुझ पे हंस लो ख़ूब ऐ अहले-जहां
मां क़सम रोओगे छुपकर मेरे मर जाने के बाद।
</poem>
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