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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार नयन |अनुवादक= |संग्रह=दयारे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कैसे हैं ये नीले लोग
अमृत से ज़हरीले लोग।
तन के मैले हैं लेकिन
मन के हैं चमकीले लोग।
अंदर फूल सरीखे हैं
बाहर से पथरीले लोग।
लथपथ खून-पसीने से
रहते हरदम गीले लोग।
भूखे-प्यासे ही अक्सर
सोते सूखे पीले लोग।
अपनी धुन के पक्के हैं
बेहद सरल लचीले लोग।
दुख अपना झुठलाते हैं
हंस-हंसकर मस्तीले लोग।
हक़ अपना कब पाएंगे
भोले मन के ढीले लोग।
दिल में शोले रक्खेंगे
इक दिन ये बर्फीले लोग।
</poem>
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|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
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<poem>
कैसे हैं ये नीले लोग
अमृत से ज़हरीले लोग।
तन के मैले हैं लेकिन
मन के हैं चमकीले लोग।
अंदर फूल सरीखे हैं
बाहर से पथरीले लोग।
लथपथ खून-पसीने से
रहते हरदम गीले लोग।
भूखे-प्यासे ही अक्सर
सोते सूखे पीले लोग।
अपनी धुन के पक्के हैं
बेहद सरल लचीले लोग।
दुख अपना झुठलाते हैं
हंस-हंसकर मस्तीले लोग।
हक़ अपना कब पाएंगे
भोले मन के ढीले लोग।
दिल में शोले रक्खेंगे
इक दिन ये बर्फीले लोग।
</poem>