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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
धूप है सहरा है अहले कारवां धीरे चलो
दूर तक कोई नहीं है सायबां धीरे चलो।

रह न जाये कोई भी साथी हमारा राह में
साथ बच्चे औरतें हैं नौजवाँ धीरे चलो।

आज आंखों से नहीं क़दमों से पढ़ना है तुम्हें
रहगुज़र के दर्द की हर दास्तां धीरे चलो।

मील के पत्थर की साज़िश रहबरों की घात है
काफ़िला ये लुट न जाये निगहबां धीरे चलो।

ढूंढना है ज़िन्दगी का हर ठिकाना दोस्तो
वक़्त के क़दमों के पाने हैं निशां धीरे चलो।

तुमसे मिलने के लिए मैं भी बहुत बेताब हूँ
मुस्कुराकर कह रहा है आसमां धीरे चलो

सुन लो कोई दे रहा है प्यार से तुमको सदा
मेहरबाँ ओ मेहरबाँ ओ मेहरबाँ धीरे चलो।
</poem>
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