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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
तेरा ख़यालो-ख़्वाब सुहाना लगा मुझे
हालांकि तू बहुत ही पुराना लगा मुझे।

इतने थे जब करीब तो फिर क्यों मिरे रफ़ीक़
तुमको तलाशने में ज़माना लगा मुझे।

तेरी मुखालिफत का हौ अंजाम सब पता
पीछे नहीं हटूंगा निशाना लगा मुझे।

इक घर में रह के मुझसे नहीं मिलना आपका
घर से निकालने का बहाना लगा मुझे।

हर सू यहां पे दर्द के ही फूल हैं खिले
रुकने का इसलिए ये ठिकाना लगा मुझे।

मेरी सलामती की दुआ दुश्मनों ने की
सचमुच ये उनका मुझको हराना लगा मुझे।

</poem>
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