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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मिलती है इसमें कितनी खुशी आज़मा के देख
रोते हुए दिलों की कभी तो हंसा के देख।
दिखलायेगा तिरा न कोई अक्स आइना
आंखों से मेरी आंखों को अपनी मिला के देख।
मिरर जिगर की आग से जल जाएंगे तमाम
इन बुझ चुके चिरागों को मुझसे छुआ के देख।
वैसा नहीं वो जैसा समझता है उसको तू
उसके ज़रा क़रीब से उसको तो जा के देख।
मैं कुछ नहीं हूँ फिर भी बहुत कुछ नहीं हूँ क्या
खंडर में मेरे दिल के कभी तो समा के देख।
बाहर निकल सकेगा नहीं डूबने के बाद
दरिया-ए-दिल में यार के गोते लगा के देख।
किस्मत बदल न जाये तो कहना कि क्या कहा
हाथों को चीरकर तू लकीरें बना के देख।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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मिलती है इसमें कितनी खुशी आज़मा के देख
रोते हुए दिलों की कभी तो हंसा के देख।
दिखलायेगा तिरा न कोई अक्स आइना
आंखों से मेरी आंखों को अपनी मिला के देख।
मिरर जिगर की आग से जल जाएंगे तमाम
इन बुझ चुके चिरागों को मुझसे छुआ के देख।
वैसा नहीं वो जैसा समझता है उसको तू
उसके ज़रा क़रीब से उसको तो जा के देख।
मैं कुछ नहीं हूँ फिर भी बहुत कुछ नहीं हूँ क्या
खंडर में मेरे दिल के कभी तो समा के देख।
बाहर निकल सकेगा नहीं डूबने के बाद
दरिया-ए-दिल में यार के गोते लगा के देख।
किस्मत बदल न जाये तो कहना कि क्या कहा
हाथों को चीरकर तू लकीरें बना के देख।
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