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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
मुश्किलों के हुक्म की ये ज़िन्दगी तामील है
बांस पर बुझती हुई जैसे टँगी कंदील है।

मुब्तला फ़िरक़ापरस्ती में हैं वो जिनके फ़क़त
वेद है इस हाथ में उस हाथ में इंजील है।

ग़म के इस माहौल में आंसू बहाना छोड़कर
लिख रहा ग़म का सबब मेरा क़लम तफ़्सील है।

सिर्फ कोशिश ही तमन्ना है मिरी उम्मीद भी
मेरा दावा है कि हर हसरत मिरी तकमील है।

पूछते हो क्या ठिकाना राहतों की छांव का
तुम फ़क़त चलते रहो मंज़िल हज़ारों मील है।

माँ क़सम एहसास के रिश्ते सिमटते जा रहे
आदमी कैसे मशीनों में हुआ तब्दील है।

तंज़ो-ताना सुन के भी अपनी ग़ज़ल कहता रहा
शायरी तेरी 'नयन' क्या मिल्कियत तहसील है।

</poem>
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